नईदिल्ली
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने से इनकार कर दिया। नायडू ने याचिका में उनके खिलाफ कथित कौशल विकास निगम घोटाले में दर्ज प्राथमिकी रद्द करने की मांग की है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने तेलुगु देशम पार्टी प्रमुख की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा से कहा, “कल उल्लेख सूची में आइये। हम देखेंगे कि क्या करना है।” अधिवक्ता ने याचिका उल्लेख सूची में नहीं होने के बावजूद मामले में तत्काल सुनवाई की मांग की थी।
लूथरा ने शीर्ष अदालत को अवगत कराया कि नायडू 8 सितंबर से हिरासत में हैं और आंध्र प्रदेश में विपक्ष पर अंकुश लगाया जा रहा है।
शीर्ष अदालत ने आउट-ऑफ-टर्न उल्लेख को स्वीकार नहीं किया और लूथरा को तत्काल सूचीबद्ध करने के निर्देश के लिए 26 सितंबर को मामले का फिर से उल्लेख करने को कहा।
आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति श्रीनिवास रेड्डी की एकल पीठ द्वारा 22 सितंबर को उनकी याचिका खारिज किये जाने के बाद नायडू ने उच्चतम न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका दायर की है।
शीर्ष अदालत के समक्ष दायर याचिका में कहा गया है, "याचिकाकर्ता को 21 महीने पहले दर्ज की गई प्राथमिकी में अचानक नामित कर गैरकानूनी तरीके से गिरफ्तार किया गया और केवल राजनीतिक कारणों से प्रेरित होकर उसकी स्वतंत्रता से वंचित कर दिया गया, जबकि उनके खिलाफ कोई तथ्य नहीं है।"
इसमें कहा गया है कि नायडू के खिलाफ जांच शुरू करना और प्राथमिकी दर्ज करना दोनों गैर-स्थायी (कानून में अस्तित्वहीन) हैं क्योंकि दोनों ही भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम, 1988 की धारा 17-ए के तहत अनिवार्य अनुमोदन के बिना शुरू किये गये हैं और जांच आज तक जारी है।
नायडू को इस मामले में सीआईडी ने 9 सितंबर को नंद्याल में गिरफ्तार किया था। अगले दिन, विजयवाड़ा में एसीबी कोर्ट ने उन्हें 14 दिनों के लिए न्यायिक हिरासत में भेज दिया।
सीआईडी को 22 सितंबर को राजमुंदरी सेंट्रल जेल में पूछताछ करने के लिए नायडू की दो दिनों की हिरासत दी गई थी, जहां वह वर्तमान में बंद हैं।
रविवार को टीडीपी सुप्रीमो की दो दिन की पुलिस हिरासत खत्म होने के तुरंत बाद, एसीबी अदालत ने उनकी न्यायिक हिरासत 5 अक्टूबर तक बढ़ा दी।
कथित मामला नायडू सरकार के समय आंध्र प्रदेश राज्य में उत्कृष्टता केंद्रों (सीओई) के समूहों की स्थापना से संबंधित है, जिसकी कुल अनुमानित परियोजना लागत 3,300 करोड़ रुपये थी।
सीआईडी ने दावा किया कि कथित धोखाधड़ी से राज्य सरकार को 371 करोड़ रुपये का भारी नुकसान हुआ है। एजेंसी ने दावा किया कि 371 करोड़ रुपये की अग्रिम राशि, जो परियोजना के लिए सरकार की पूरी 10 प्रतिशत प्रतिबद्धता का प्रतिनिधित्व करती है, निजी संस्थाओं द्वारा किसी भी खर्च से पहले जारी की गई थी।