मुंबई
छोटे पर्दे की अनपढ़ 'इमली' कोरियोग्राफर पिता और एक्ट्रेस म्यूजिशियन बहन से खूब सारी बातें करती हैं। बीते दिनों वह अपने आगामी टीवी शो 'काव्या- एक जज्बा' की शूटिंग के लिए लखनऊ आई थीं। इस दौरान उन्होंने दिल की डायरी से पुरानी यादें निकालीं तो कुछ आगे के कामों पर भी गुफ्तगू की। 'आर्टिकल-15' की बाल कलाकार अब फिल्मों में गुंडों की पिटाई करना चाहती हैं।
मैं शो में 'काव्या' का किरदार निभा रही हूं, जो कि आईएएस की तैयारी कर रही है। वह मुश्किलों का सामना करते हुए फिर से खड़ी हुई है। उसने अपनी आंखों में आईएएस ऑफिसर बनने का सपना सजा रखा है। वह उन जरूरतमंदों की मदद करना चाहती है, जिनके लिए कोई आगे नहीं आता। काव्या, महाभारत के अर्जुन की तरह अपने लक्ष्य पर ध्यान लगाए रहती है। किरदार में खुद को पारंगत करने के लिए मैंने कई आईएएस ऑफिसर के इंटरव्यू देखे। वह बहुत बुद्धिमान लोग होते हैं और उन्हें हर परिस्थिति से निपटना आता है तो मैंने बात उनके तौर-तरीके समझे। बाकी जब आप अच्छे कलाकारों के साथ काम करते हैं तो बहुत सी बेहतर चीजें निकलकर आती हैं।
पापा और बहन से होती हैं क्रिएटिव बातें
जिसके पापा कोरियोग्राफर और छोटी बहन एक्टर हो, स्वाभाविक है कि उनके घर में चर्चा कुछ अलग होगी। इस पर अभिनेत्री कहती हैं कि हमारे घर में रचनात्मक चर्चा खूब होती है। अभी बहन ने अभिनय छोड़ दिया है और वह म्यूजिक इंडस्ट्री की तरफ ध्यान लगा रही है। इन दिनों वह म्यूजिक प्रोडक्शन सीख रही है। कभी-कभी मैं भी की-बोर्ड और गिटार बजाती हूं। पापा कोरियोग्राफर के साथ एडिटर भी बहुत अच्छे हैं। मैं खुद भी शूट और एडिटिंग कर सकती हूं। सबका हर चीज को देखने का अपना नजरिया है और यह तरक्की के लिए बहुत फायदेमंद भी है क्योंकि इससे आपको एक चीज के बारे में कई एंगल मिल जाते हैं।
पापा ने जबरदस्ती करवाई ऐक्टिंग
मैंने बचपन में डॉक्टर बनने का ख्वाब देखा था। पांच साल की उम्र से मैंने डांस करना शुरू कर दिया था तो सोचा कि इसी क्षेत्र में कुछ करना है। आज भी मेरा सपना डांस कोरियोग्राफर बनने का है। डांस में हम लोग अच्छा कर रहे थे लेकिन फिर पापा ने बोला कि कुछ और बड़ा करते हैं। फिर उन्होंने जबरदस्ती ऐक्टिंग करवानी चालू की। दो साल जबरदस्ती काम किया। फिर मैंने सोचा कि जो-जो मैं करती हूं, फिर चाहे वह सिंगिंग, डांसिंग, राइटिंग या ऐक्टिंग कुछ भी हो, इसके जरिए मुझे कई और जिंदगियां जीने का मौका मिलेगा। फिर मजा आने लगा और सब कुछ अच्छा होता जा रहा है। मैं अपने आप को कछुआ मानती हूं। धीरे-धीरे चल रही हूं और दस साल में यहां तक पहुंची हूं।