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बृजभूषण की और बढ़ेंगी मुश्किलें? पुलिस ने यौन उत्पीड़न मामले में कोर्ट में किए बड़े दावे

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नईदिल्ली

भारतीय कुश्ती महासंघ के पूर्व अध्यक्ष और बीजेपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह की मुश्किलें कम नहीं हुई हैं. बृजभूषण के खिलाफ यौन उत्पीड़न मामले में दिल्ली पुलिस ने कोर्ट में बड़ा दावा किया है. दिल्ली पुलिस के वकील ने शनिवार को अदालत को बताया कि बृजभूषण को जब भी मौका मिला, उन्होंने शिकायतकर्ता महिला पहलवानों की लज्जा भंग करने की कोशिश की.

दिल्ली पुलिस के वकील अतिरिक्त लोक अभियोजक अतुल श्रीवास्तव ने अदालत को बताया कि बृजभूषण को पता था कि वह क्या कर रहा है और उसका इरादा क्या है? बता दें कि बृजभूषण शरण के खिलाफ 6 महिला पहलवानों ने यौन उत्पीड़न की शिकायत की थी. इस मामले में दिल्ली पुलिस की तरफ से बृज भूषण शरण के खिलाफ चार्जशीट दायर की गई है. अब इस मामले में दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट में आरोप तय करने के लिए दलीलों पर सुनवाई हो रही है.

'बृजभूषण को पेशी से मिली छूट'
बृजभूषण शरण की तरफ से अनुरोध किए जाने पर शनिवार को पेशी से छूट दी गई. दिल्ली पुलिस के वकील ने बताया कि बृजभूषण के खिलाफ तीन तरह के सबूत हैं, जिनमें लिखित शिकायत, सीआरपीसी की धारा 161 और 164 के तहत बयान शामिल हैं जो आरोप तय करने के लिए पर्याप्त हैं. उन्होंने कहा कि आरोप तय करना अदालत के अधिकार क्षेत्र में है.

'बृजभूषण ने सरकारी मंजूरी नहीं लिए जाने का दिया तर्क'

उन्होंने कहा, बचाव पक्ष का एक तर्क यह है कि सीआरपीसी की धारा 188 के तहत सरकारी मंजूरी नहीं ली गई है. जिन घटनाओं की शिकायत की गई है वे एक ही ट्रांजेक्शन की नहीं हैं. अतुल श्रीवास्तव ने पहले के एक फैसले का हवाला दिया और तर्क दिया कि धारा 188 के तहत मंजूरी की जरूरत तभी होगी जब सभी आरोप भारत के बाहर से हों.

उन्होंने कहा कि मौजूदा मामला आईपीसी की धारा 354 के तहत है, जो किसी महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने के इरादे से हमला या बल प्रयोग करने की बात करता है. श्रीवास्तव के अनुसार, घटनाएं दिल्ली के साथ-साथ अन्य स्थानों पर भी हुईं, इसलिए सीपीआरपीसी की धारा 188 प्रतिबंध कानूनी दायरे में नहीं आते हैं.

'विनोद तोमर पर बृजभूषण की मदद करने का आरोप'

दिल्ली पुलिस के वकील ने इस मामले में सह-आरोपी विनोद तोमर के संबंध में भी अदालत को जानकारी दी और बताया कि सभी गवाहों ने कहा है कि तोमर ने शिकायतकर्ताओं के साथ आए लोगों को बाहर भेजकर उन्हें कार में रहने के लिए कहा और बृजभूषण के कृत्यों को छिपाने में मदद की. इससे पहले बृजभूषण के वकील राजीव मोहन ने तर्क दिया कि पहलवानों ने कहा है कि उन्होंने 5 साल तक इसलिए शिकायत दर्ज नहीं की, क्योंकि वे अपने करियर को लेकर चिंतित थे. यह देरी से शिकायत करने का उचित स्पष्टीकरण नहीं है. अभी 'संभावित आधार' बनाए जा रहे हैं.

राजीव मोहन ने अदालत को तर्क दिया कि कुश्ती जैसे आयोजनों में पुरुष कोचों का महिला पहलवानों को गले लगाना सामान्य बात है. क्योंकि ज्यादातर कोच पुरुष होते हैं. महिला कोच कम ही हैं. यह भी कोई नियम नहीं है कि महिला खिलाड़ियों के लिए सिर्फ महिला कोच ही होंगी. अगर कोई पुरुष कोच है और किसी टेंशन या अच्छी उपलब्धि के कारण किसी खिलाड़ी को गले लगाता है तो यह सामान्य बात है. हम इसे टीवी पर देखते हैं. अगर कोई विंबलडन मैच होता है तो ऐसा नहीं है कि सिर्फ महिला कोच ही महिला खिलाड़ियों को गले लगाएंगी.

राजीव मोहन ने सीआरपीसी की धारा 188 का हवाला दिया और कहा कि यह एक विशिष्ट प्रतिबंध बनाता है कि जब किसी भारतीय नागरिक द्वारा भारत के बाहर कोई अपराध किया जाता है तो केंद्र सरकार की पूर्व मंजूरी के बिना ऐसे किसी भी अपराध की भारत में जांच या सुनवाई नहीं की जा सकती है. इसलिए, धारा 188 के आलोक में दिल्ली की अदालत को देश के बाहर के अपराधों पर निर्णय लेने का अधिकार नहीं है, जब तक कि मंजूरी प्राप्त ना की गई हो.

'कोर्ट ने बृजभूषण को 20 जुलाई को दी थी जमानत'

बता दें कि अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट हरजीत सिंह जसपाल ने 20 जुलाई को बृजभूषण शरण सिंह और भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) के निलंबित सहायक सचिव विनोद तोमर को जमानत दे दी थी. दिल्ली पुलिस ने 15 जून को कोर्ट में छह बार के सांसद बृजभूषण के खिलाफ आईपीसी की धारा 354 (महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने के इरादे से उस पर हमला या आपराधिक बल), धारा 354 ए (यौन उत्पीड़न), धारा 354 डी (पीछा करना) और धारा 506 (आपराधिक धमकी) के तहत आरोप पत्र दायर किया था.