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सऊदी अरब ने J &K के मुस्लिमों पर बयान देकर भारत को दिया बड़ा झटका

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नईदिल्ली

इस्लामिक देशों के संगठन ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कॉपरेशन (OIC) की न्यूयॉर्क में आयोजित बैठक में सऊदी अरब ने जम्मू कश्मीर (Jammu and Kashmir) के मुस्लिमों पर बयान देकर भारत को बड़ा झटका दिया है। सऊदी अरब के विदेश मंत्री प्रिंस फैसल बिन फरहान बिन अब्दुल्ला ने जम्मू और कश्मीर की मुस्लिम आबादी को अपना समर्थन जताते हुए कहा कि वह भारतीय राज्य में मुस्लिमों की इस्लामी पहचान बनाए रखने और उनकी गरिमा को बनाए रखने में उनके साथ खड़ा है।

बुधवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा की 78वीं बैठक से हटकर न्यूयॉर्क में इस्लामिक संगठन ओआईसी द्वारा आयोजित जम्मू और कश्मीर के संपर्क समूह की एक बैठक में प्रिंस फैसल बिन फरहान बिन अब्दुल्ला ने क्षेत्र में चल रहे संघर्ष और अशांति के कारण पीड़ितों के लिए सऊदी अरब का समर्थन दोहराया। आधिकारिक सऊदी प्रेस एजेंसी (SPA) ने इसकी सूचना दी है।

सऊदी अरब ने जम्मू-कश्मीर मुद्दे को क्षेत्र की सुरक्षा और स्थिरता के लिए गंभीर चुनौती बताया है। सऊदी अरब ने चेतावनी के लहजे में कहा है कि अगर इस मुद्दे को नहीं सुलझाया गया तो इस क्षेत्र में और अस्थिरता बढ़ेगी। सऊदी अरब के विदेश मंत्री ने कहा कि उनका देश इस क्षेत्र में किसी भी संघर्ष को बढ़ने से रोकने और अंतरराष्ट्रीय प्रस्तावों के अनुसार शांतिपूर्ण समाधान हासिल करने के लिए संबंधित पक्षों के बीच मध्यस्थता प्रयासों में लगा हुआ है। तुर्की ने भी इस मुद्दे पर सऊदी अरब की हां में हां मिलाया है।

कश्मीर विवाद भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से एक विवादित मुद्दा रहा है और भारत इसमें किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता के खिलाफ रहा है। 1947 में भारत और पाकिस्तान के विभाजन के बाद से इस क्षेत्र में हिंसक घटनाएं होती रही हैं। 1989 के बाद इस क्षेत्र में हिंसक घटनाओं में और तेजी आई है, जब से अलगाववादियों को पाक ने समर्थन देना शुरू किया है। पाकिस्तान ने कश्मीर के एक बड़े भू-भाग को भी अपने कब्जे में कर रखा है और वैश्विक मंच पर आरोप लगाता रहा है कि भारत मुस्लिमों पर कहर ढाता है। भारत इसका सभी मंचों पर डटकर विरोध करता रहा है।

बता दें कि इस्लामिक संगठन Organization of Islamic Cooperation जिसे पूर्व में Organisation of the Islamic Conference कहा जाता था, की स्थापना 1969 में हुई थी। यह एक अंतरसरकारी संगठन है, जिसमें 57 सदस्य देश शामिल हैं। इनमें से 48 मुस्लिम-बहुल देश हैं। संगठन का कहना है कि यह “मुस्लिम दुनिया की सामूहिक आवाज़” है और “अंतर्राष्ट्रीय शांति और सद्भाव को बढ़ावा देने की भावना में इस्लामिक दुनिया के हितों की रक्षा और संरक्षण” के लिए काम करता है।