Home धर्म संसार का मोह छोड़ चल पड़े संयम पथ की ओर

संसार का मोह छोड़ चल पड़े संयम पथ की ओर

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रायपुर। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्म संघ की तीन दीक्षाएं रविवार को हुई। पहली बार रायपुर में हुई तेरापंथ धर्मसंघ की दीक्षा देखने छत्तीसगढ़ और ओडिशा के अनेक सम्प्रदाय के लोग आए। आचार्य महाश्रमण जी ने गीदम के मुमुक्षु राहुल, केसिंगा की मुमुक्षु चंदनबाला और समणी ओजस्वी प्रज्ञा को जैनम मानस भवन में आयोजित समारोह में दीक्षा प्रदान की। आचार्य महाश्रमण जी ने कहा कि दीक्षा यूँ ही नहीं दी जाती है। दीक्षा से पूर्व उन्हें शिक्षा देना और वे संयम पथ के लिये तैयार है कि नहीं इसकी परीक्षा लेना आवश्यक होता है। समारोह में दीक्षा से पूर्व परिवार की लिखित और मौखिक अनुमति ली गई। दीक्षार्थियों से भी पूरी सभा के समक्ष पूछा गया कि अगर वे पूरी तरह से संयम पथ पर चलने के लिए तैयार हैं तो ही दीक्षा स्वीकार करें। इसके बाद सबकी अनुमति से आचार्य श्री महाश्रमण जी ने दीक्षा प्रदान की। सफेद वस्त्र में दीक्षा के लिये तैयार बैठे दीक्षार्थियों ने सबसे पहले अभिनंदन में पहनाई गई सूखे फूलों की माला उतारी फिर गृहस्थ का आसान छोड़ा।
सहिष्णुता का परिचय लोच
दीक्षा के मुख्य संस्कार के रूप में मुमुक्षु राहुल के कुछ बालों का राख से लोचन आचार्य महाश्रमण ने किया। उन्होंने कहा कि यह दीक्षा की पहली कसौटी है लोच की प्रक्रिया में दर्द होता है यहाँ सहिष्णुता का परिचय मिलता है। बाद में दाढ़ी मूंछ के बाल भी रख से लोच करने पड़ते है, जो कष्टप्रद होता है लेकिन असंभव नहीं। साध्वी प्रमुखा कनक प्रभा जी ने मुमुक्षु चंदनबाला और समणी ओजस्वी प्रज्ञा का लोच किया।
अहिंसा में सहायक रजोहरण
आचार्य महाश्रमण जी ने मुनि और साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा जी ने साध्वियों को रजोहरण प्रदान किया। आचार्य श्री ने बताया कि रजोहरण साधु जीवन का प्रतीक और अहिंसा में सहायक है। साधु साध्वियों को इससे रास्ते के जीवों को हटाकर चलना चाहिए ताकि किसी जीव को कष्ट न पहुंचे।
वेश के साथ नाम भी बदला
साधु साध्वी के वेश में आते ही दीक्षा के बाद मुमुक्षु राहुल मुनि रत्नेश कुमार बन गए, समणी ओजस्वी प्रज्ञा साध्वी ओजस्वी प्रभा एवं मुमुक्षु चंदनबाला साध्वी चेतस्वी प्रभा बन गई।
दो भाई और दो सगी बहनों की दीक्षा
गीदम के मुमुक्षु राहुल के सगे छोटे भाई ऋषि मुनि बड़ेपापा रजनीश मुनि पहले ही धर्म संघ में दीक्षित हैं। उनके पिता प्रकाश बुरड़ और माँ ममता बुरड़ ने कहा कि दो बेटों को हमने तेरापंथ संघ को सौंपा है अगर चार संतान होती तो चारों को खुशी खुशी दीक्षा दे देते। समणी ओजस्वी प्रज्ञा और मुमुक्षु चंदनबाला भी सगी बहनें हैं। केसिंगा निवासी उनके माता पिता हरिराम जैन और कुसुमबाला जैन ने कहा कि चार बेटियों में से दो ने दीक्षा लेकर हमें धन्य कर दिया। संयम पथ पर वे अग्रसर होती जाए। आचार्य महाश्रमण जी ने कहा कि कितनी बड़ी बात है कि इस प्रकार भाई-भाई, बहन-बहन को, अपनी संतानों को श्रावक संघ में समर्पित कर देते है। श्रावकों में ऐसी भावना बढ़े कि मैं अपनी संतानों को संयम पथ पर अग्रसर करूँ, धर्मसंघ में साधना के लिए समर्पित करूँ।
साधु जीवन में हर जगह संयम की अपेक्षा
आचार्य महाश्रमण जी ने कहा कि अनंत जन्मों के काल में वह जन्म बहुत ही सौभाग्यशाली है जब व्यक्ति संयम जीवन को स्वीकार करता है। उन्होंने दीक्षार्थियों से कहा कि साधु जीवन में संयम की अपेक्षा होती है। अब से संयम पूर्वक चलना, बैठना, सोना और खड़े रहना। अहिंसा के प्रति जागरूक रहना। आहार और वाणी का संयम रखना। अनावश्यक नहीं बोलना और कटु वचन नहीं कहना। संयम मार्ग पर चलकर शिक्षा लेना, खूब पढ़ना लिखना एयर स्वयं की चेतना जागृत करना। आध्यात्म की साधना करना। उन्होंने कहा कि साधना में रमा हुआ साधु सबसे सुखी होता है और जो साधु साधना में नही रमता उसके लिए सब कष्टप्रद हो जाता है।
तेरापंथ संघ क्या है
आचार्य महाश्रमण ने बताया कि जैन धर्म में श्वेतांबर एवं दिगंबर दो मुख्य धाराएं हैं। श्वेतांबर में भी मूर्तिपूजक- अमूर्तिपूजक विचारधारा है। तेरापंथ संघ मूर्ति पूजक विचारधारा को नहीं मानता है। यह अमूर्तिपूजक संघ है। आचार्य श्री भिक्षु द्वारा प्रवर्तित यह तेरापंथ प्रभु का पंथ है। हे प्रभो ! यह तेरापंथ। हम इस प्रभु के पथ के पथिक है। पांच महाव्रत, पांच समिति और तीन गुप्तियों की आराधना भी तेरापंथ के साधुओं की पहचान है। हमारे यहां दीक्षाएं ऐसे ही नहीं होती।
एकलव्य की तरह हो साधना
साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा जी ने कहा कि दीक्षा रूपांतरण की प्रक्रिया है। अध्यात्म यात्रा व आत्म जागरण की ओर प्रस्थान है दीक्षा। जैन धर्म में प्राचीन काल से ही दीक्षा का क्रम चल रहा है। अनेक सम्प्रदाय है जिनमें हजारों साधु-साध्वियां साधना कर रहे हैं। पर तेरापंथ की दीक्षा इसलिए अलग है क्योंकि तेरापंथ में आचार्य ही शिष्य को दीक्षित करते हैं। गुरु आज्ञा के बिना कोई भी किसी को दीक्षा नहीं दे सकता। आचार्य की आज्ञा ही शिष्य के जीवन का आधार होती है। आचार्य शिष्यों को आगे बढ़ाते हैं। दीक्षित साधु-साध्वियां अपना सर्वस्व गुरु चरणों में समर्पित कर एकलव्य की तरह अपनी साधना का विकास करें, संयम यात्रा में आगे बढ़े।
बौद्धिकता के साथ हो भावनात्मक विकास
राज्य के प्राइवेट स्कूल के लगभग 100 प्रतिनिधियों ने आचार्य श्री महाश्रमण जी से प्रेरणा ली। आचार्य प्रवर ने कहा उन्हें जीवन विज्ञान के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि बौद्धिक विकास के साथ भावनात्मक विकास करके ही हम अच्छे नागरिक तैयार कर सकते हैं। उन्होंने स्कूल के बच्चों को नैतिक शिक्षा और जीवन विज्ञान सीखाने की प्रेरणा दी। जिससे बच्चों का सम्पूर्ण विकास हो और वे राष्ट्र निर्माण में सहयोग दे।