बस्तर। देश में सबसे जुदा तरीके से मनाए जाने वाले बस्तर दशहरा की रस्में शुरू हो गईं हैं। फुलरथ की पहली परिक्रमा रविवार को पूरी हुई। फूलों से सजे आठ चक्के के इस रथ को लेकर जगदलपुर और तोकापाल तहसील के 36 गांवों से पहुंचे लगभग 400 ग्रामीणों ने खींचकर गोलबाजार की परिक्रमा की। बस्तर दशहरा लगभग 75 दिन तक मनाया जाता है, इसकी शुरूआत अब हो चुकी है।
यह है मान्यता
सालों पुरानी मान्यता है कि काकतीय नरेश पुरुषोत्तम देव ने एक बार जगन्नाथपुरी तक पैदल तीर्थयात्रा कर मंदिर में स्वर्ण मुद्राएं भेंट की थी। यहां राजा पुरुषोत्तम देव को रथपति की उपाधि से विभूषित किया गया। जब राजा पुरुषोत्तम देव पुरी धाम से बस्तर लौटे, तब उन्होंने धूम-धाम से दशहरा उत्सव मनाने की परंपरा की शुरूआत करने का फैसला लिया। और तभी से दशहरा पर्व में रथ चलाने की प्रथा है।
बस्तर दशहरा में शारदीय नवरात्रि की द्वितीया तिथि से सप्तमी तिथि तक फुलरथ को खींचने के लिए हर वर्ष बड़ी संख्या में जगदलपुर और तोकापाल तहसील के 36 गांवों के ग्रामीण यहां पहुंचते हैं। इस साल कोरोना के संक्रमण को देखते हुए बस्तर दशहरा समिति और जिला प्रशासन द्वारा पूरी सावधानी के साथ इस रस्म को मनाने का निर्णय लिया।