रायपुर। जिस पल व्यक्ति को मौन की परिभाषा समझ में आ गई, समझो उस दिन उसे गुरू मिल गया। शरीर से इसकी परिभाषा समझी जा सकती है। शरीर में किसी भी दर्द का एहसास होने पर व्यक्ति व्याकुल हो जाता है और यह दर्द उसे स्वंय ही सहन करना होता है। ऐसी ही व्याकुलता जीवन में गुरू के प्रति आ गई तो समझो उसे गुरू अवश्य प्राप्त हो जायेंगे। विवादित रामजन्मभूमि नहीं है, विवादित है व्यक्ति की मानसिकता। मानसिकता सुधरेगी तभी जीवन में भी संतुलन आयेगा। श्री रामकिंकरजी के परमशिष्य और श्री रामकिंकर विचार मिशन के अध्यक्ष संत श्री मैथिलिशरण भाई जी ने कहा कि गुरू और शिष्य दोनों में से कोई भी एक पूर्ण सत्य निष्ठा के साथ उसके प्रति समर्पित हो जाए तो दोनों एक हो जाते हैं, ठीक वैसे ही जिस प्रकार प्रेमी-प्रेमिका और पे्रमार्थ इन तीनो में से यदि कोई एक भी सत्य निष्ठा के साथ समर्थता के साथ एक हो जाएं तो दूजा कोई रहता ही नहीं हैं। भाईजी ने कहा कि एक तत्व तो हमें दिखाई देता है लेकिन दूसरा तत्व पर ध्यान केंद्रित करते हैं। दिखाई नहीं देने वाले पर ध्यान केंद्रित नहीं करते और उसी को हम साकार और निराकार कहते हैं। जितना अच्छा सृजन प्रतिकूलता में होता है उतना अनुकूलता में नहीं। प्रतिकूलता में हम दूसरों के लिए सृजन करते हैं और अनुकूलता में स्वंय के लिए। अयोध्या में रामजन्मभूमि पर भाईजी का मानना है कि विवादित रामजन्म भूमि नहीं है विवादित तो हैं लोगों की मानसिकता इसीलिए इसका समाधान नहीं निकल पा रहा है। जब तक मानसिकता में संतुलन नहीं आयेगा तब तक जीवन में संतुलन नहीं आयेगा और न ही जनहित हो पायेगा। उन्होंने कहा कि राम भी शिव की पूजा किया करते थे और रावण भी। रावण ने अपना शीश काटकर शिव को समर्पित करने लगा था लेकिन शिव ने उसे लौटा दिया क्योकि रावण ने अपना विवेक मयार्दा ही शिव को समर्पित कर दी थी तो भक्त दूसरों का कल्याण कैसे कर सकता है। वहीं शिव ने राम के बेल पत्रों को स्वीकार कर लिया क्योकि राम स्वंय का हित छोड़कर, यहां तक की वे रावण का भी हित चाहते थे। पूजा अपने हितों के लिए नहीं दूसरों के हितों के लिए होनी चाहिए।