रायपुर। छत्तीसगढ़ में धान खरीदी सियासत का एक बड़ा मुद्दा रहा है, तब भी जब राज्य में बीजेपी की सरकार थी और अब भी जब सूबे की सरकार की कमान कांग्रेस के हाथों है। दरअसल 2500 रूपए समर्थन मूल्य पर धान खरीदे जाने और सेंट्रल पूल में 32 लाख मीट्रिक टन चावल खरीदने के राज्य के प्रस्ताव को केंद्र सरकार ने ठुकरा दिया है। केंद्र के इस रवैये से बावजूद भूपेश सरकार ने ऐलान किया है कि वादे के अनुरूप ही धान की खरीदी होगी, लेकिन इन तमाम हालातों के बीच कांग्रेस सरकार ने केंद्र पर दबाव बनाने के लिए राजनीतिक दलों का समर्थन जुटाने की मुहिम छेड़ी। सर्वदलीय बैठक बुलाई, तो सभी सांसदों को रायशुमारी के लिए आमंत्रित किया, लेकिन इस बैठक से बीजेपी ने किनारा कर लिया. बीजेपी ने बैठक की सूचना नहीं होने की दलील दी, तो जवाब में खुद मुख्यमंत्री ने निमंत्रण भेजे जाने वाली चिट्ठी को सार्वजनिक कर दिया, उन्होंने बीजेपी पर हमला बोलते हुए झूठ बोलने वाली पार्टी करार दिया है। समर्थन मूल्य और सेंट्रल पूल में चावल लिए जाने की मांग को लेकर भूपेश सरकार सड़क के रास्ते दिल्ली कूच भी करने जा रही है। सरकार ने इस आंदोलन को लेकर राजनीतिक दलों के साथ-साथ किसान संगठनों से समर्थन भी मांगा है। धान खरीदी के मसले पर राज्य सरकार के प्रस्ताव को केंद्र द्वारा खारिज किए जाने के बाद आज भूपेश सरकार ने सभी सांसदों की बैठक बुलाई थी, लेकिन इस बैठक में बीजेपी सांसद मौजूद नहीं हुए। बीजेपी की ओर से बड़े नेताओं के आए बयानों में यह बार-बार कहा जाता रहा कि उन्हें इस बैठक की सूचना नहीं दी गई थी, जबकि ठीक इस बीच बीजेपी के कई सांसदों ने सरकार को चिट्ठी लिखकर बैठक में शामिल नहीं होने की सूचना भेजी, इस बैठक में केवल तीन सांसदों की मौजूदगी रही, जिसमें बस्तर सांसद दीपक बैज, कोरबा सांसद ज्योत्सना महंत और राज्यसभा सांसद छाया वर्मा थी। बैठक खत्म होने के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बीजेपी सांसदों पर हमलावर होते हुए दो टूक कहा कि बीजेपी का किसान विरोधी चेहरा नजर आ रहा है, उन्होंने बीजेपी से दो महत्वपूर्ण सवालों के जवाब मांगें हैं। भूपेश बघेल ने पूछा है कि बीजेपी इस मुद्दे पर अपनी राय स्पष्ट कर दे कि क्या वह राज्य के किसानों से 2500 रूपए समर्थन मूल्य पर धान खरीदी किए जाने की पक्षधर है या नहीं? दूसरा यह कि जब बीते साल केंद्र सरकार ने नियमों को शिथिल किया था, तो आखिर अब क्यों नहीं किया जा रहा? भूपेश बघेल ने कहा कि हम इन मुद्दों पर बीजेपी सांसदों का समर्थन चाहते थे. मुख्यमंत्री ने कहा कि साल 2014 में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने यह नीति बनाई कि जो सरकारें बोनस देगी, उन राज्यों से चावल का उपार्जन नहीं किया जाएगा, लेकिन 2017-18 में केंद्र ने छत्तीसगढ़ के लिए नियमों को शिथिल करते हुए 25 लाख मीट्रिक टन चावल सेंट्रल पूल में खरीदने का फैसला लिया था। जब पिछले साल यह खरीदी की गई, तो इस साल भी नियमों को शिथिल किया जाए. यही मांग हमने केंद्र सरकार से की थी, हमने आग्रह किया था कि चूंकि इस साल उपार्जन ज्यादा है, लिहाजा राज्य से 32 लाख मीट्रिक टन चावल खरीदा जाए। भूपेश बघेल ने कहा कि मैंने प्रधानमंत्री, खाद्यमंत्री को चिट्ठी लिखी थी, जिसके जवाब में केंद्र की तरफ से जो रिफ्यूज आया है, उसमें यह कहा गया है कि 2500 रूपए में धान खरीदी करने से बाजार अस्त-व्यस्त हो जाएगा। जबकि हकीकत यह है कि इससे बाजार बढ़ा है, उन्होंने कहा कि मैं व्यापारियों से भी अनुरोध करता हूं कि वह प्रधानमंत्री को पत्र लिखे कि छत्तीसगढ़ में मंदी का असर नहीं है, किसान मजबूत हुआ है, तो बाजार पर भी इसका सकारात्मक असर हुआ है। भूपेश बघेल ने कहा कि बीजेपी अपने वादे से मुकर रही है. बीजेपी जब सत्ता में थी, तब के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह खुद अपने मंत्रीमंडल के सदस्यों और सांसदों के साथ जाकर केंद्र सरकार से समर्थन मूल्य पर धान खरीदी किए जाने की मांग की थी। अब जब हम मांग कर रहे हैं कि नियमों में शिथिलता लाई जाए, तो बीजेपी अपना चाल, चरित्र और चेहरा दिखा रही है। धान खरीदी को लेकर भूपेश सरकार की ओर से बुलाई गई सर्वदलीय और सांसदों की बैठक में बीजेपी के शामिल नहीं होने के मामले में पूर्व मुख्यमंत्री डाक्टर रमन सिंह ने कहा कि हम तो चाहेंगे कि किसानों को ज्यादा से ज्यादा फायदा हो, लेकिन धान का समर्थन मूल्य केंद्र सरकार की पॉलिसी है। यह नीतिगत विषय है, हालांकि इस दौरान उन्होंने राज्य की 2500 रूपए समर्थन मूल्य पर धान खरीदी किए जाने के केंद्र से किए गए अनुरोध पर कोई टिप्पणी नहीं की। न ही किसी तरह से समर्थन दिए जाने का इशारा किया। डॉ. रमन सिंह ने यह जरूर कहा कि चूंकि कांग्रेस सरकार ने किसानों से धान खरीदी का वादा किया है, लिहाजा सरकार को पूरा धान खरीदना चाहिए। हम चाहेंगे कि किसानों को ज्यादा से ज्यादा फायदा हो। डॉ. रमन सिंह ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की उस टिप्पणी, जिसमें यह कहा गया था कि रमन किस आधार पर सांसदों को बैठक में जाने से रोक रहे हैं, के जवाब में कहा कि, मैं सांसदों को रोकने वाला कौन होता हूं? उन्हें रोकने का सवाल ही नहीं उठता, सांसद अपना निर्णय खुद लेते हैं, उन्हें किसी से पूछने की जरूरत नहीं है। रमन ने कहा कि इस बात का जवाब सांसद ही बेहतर ढंग से दे सकते हैं कि उन्हें निमंत्रण मिला या नहीं, पूर्व मुख्यमंत्री ने यह कटाक्ष भी किया है कि सांसद बने इतने महीने बीत गए, लेकिन सरकार ने कब-कब सांसदों को आमंत्रित किया है। सांसदों से कब राय ली गई गई है, एक बार यह भी सांसदों से पूछा जाना चाहिए, रायपुर लोकसभा सीट से बीजेपी के सांसद सुनील सोनी ने कहा कि हमें कल देर शाम बैठक की सूचना मिली, बगैर एजेंडे के इतने अर्जेंट में बैठक बुलाने का मैं कोई औचित्य नहीं है, इतने अर्जेंट में बैठक बुलाने का अधिकार केवल बीजेपी को हैं, क्योंकि बीजेपी ने हमे टिकट दिया था, आज मुख्यमंत्री यदि यह कहे कि सारे काम छोड़कर बैठक में आ जाओ, तो हम किस मुद्दे के आधार पर जाए। बैठक को लेकर हम दो दिनों से मीडिया के जरिए सब सुन रहे हैं, लेकिन हम लोगों को खबर कल शाम को मिली, छह महीने हो गए सांसद बने, लेकिन आज याद रही है, जब विवाद बढ़ गया। विवाद बढ़ा है, तो सांसद याद आ रहे हैं, मेरा सुझाव है कि 15 नवंबर से धान खरीदी की प्रक्रिया शुरू करें, किसानों को गुमराह करने का काम न करे। इधर भले ही बीजेपी ने धान पर उबलती सियासत से अपने हाथ खींच लिए हो, लेकिन कांग्रेस को इस मसले पर जोगी कांग्रेस, बसपा तथा लेफ्ट पार्टियों का साथ मिला है, बहरहाल धान की सियासत पर केंद्र ने आंखें तरेरी है, तो राज्य की भूपेश सरकार ने भी अपनी भौंहे तान दी है, लेकिन इस टकराव का अंत कहां जाकर खत्म होगा, यह फिलहाल कोई नहीं बता सकता।