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उत्तर भारतीय परिवारों में छाया छठ का उल्लास, इस बार दुर्लभ रवि योग में छठ पर्व मनाया जाएगा

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उज्जैन/इंदौर। दीपावली के पर्व के बाद कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथी पर देशभर में रहने वाले उत्तर भारतीय परिवारों के सदस्य छठ का पर्व मनाते हैं। हर्षोल्लास से मनाए जाने वाले इस पर्व में जहां सूर्योदय के समय भगवान आदित्य का पूजन किया जाता है वहीं दूसरी ओर अस्ताचलगामी सूर्य को नदी या सरोवर में कमर तक के जलस्तर में खड़े रहकर महिलाओं द्वारा अर्घ्य दिया जाता है। यह पर्व आस्था और परंपरा से जुड़ा है साथ ही यह महिलाओं की कठिन साधना और तप को दशार्ता है। जिसके माध्यम से वे अपनी घर-गृहस्थी की मंगलकामना और संतान के लिए सुख की प्रार्थना करती हैं। इस बार दुर्लभ रवि योग में छठ पर्व मनाया जाएगा। शास्त्रीय मान्यताओं में कहा जाता है कि लाभगत उद्द्श्यों की प्राप्ति के लिए रवि योग शुभफलदायी होता है। इस बार छठ का पर्व रवि योग में मनाया जाएगा। इस संयोग में पूजन करने से सूर्य देव की विशेष कृपा मिलती है। इस योग में कोई भी नया कार्य किया जा सकता है। भौगोलिक दृष्टि से यदि देखा जाए तो सूर्य का उदयकाल पूर्व दिशा में होता है। दूसरी ओर देवउठनी एकादशी, जो कि चातुर्मास के अंतिम क्रम में मनाई जाती है। इसके मात्र 5 दिवस पूर्व छठ का पर्व मनाया जाता है। इस समय सूर्य की ऊर्जा में गत्यात्मक परिवर्तन होता है। इस परिवर्तन का सकारात्मक प्रभाव संतान की बौद्धिकता पर हो इसलिए सूर्य को प्रसन्न किया जाता है। विद्वानों का मत है कि पूर्वांचल में इसे उब छठ के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन धर्म की जानकारियों के प्रसार होने और मान्यताओं को अपनाए जाने से मध्य भारत और उत्तर भारत में भी छठ का पर्व मनाया जाने लगा। वर्तमान में छठ का पर्व भारत के अधिकांश भागों में वहां रहने वाले श्रद्धालुओं के माध्यम से मनाया जाता है। इस पर्व के माध्यम से संतान की दीघार्यु और बौद्धिक उन्नति की कामना की जाती है। यह पर्व चार दिनों का होता है। जिसमें निर्जला व्रत रखा जाता है। व्रत के चार चरण होते हैं जिसमें परिवार के सदस्य मन और घर की शुद्धता का ध्यान रखते हैं। इस दौरान गुड़ और चावल के व्यंजन भी बनाए जाते हैं। महिलाओं द्वारा सूप में पूजन सामग्री और फल रखकर सूर्य देवता का पूजन किया जाता है। इसी के साथ छठी मैया का पूजन कर परिवार के सदस्यों के लिए सुख-समृद्धि का वरदान मांगा जाता है। महिलाएं संतान के लिए मंगलकामनाएं करती हैं। सूर्यास्त पर किए जाने वाले पूजन के बाद परिवार के सदस्य नदी किनारे दीपदान भी करते हैं। इस बार भी शहर में निवासरत उत्तर भारतीय परिवारों के सदस्य छठ पर्व मनाएंगे। हालांकि अभी पर्व को लेकर कुछ दिन शेष हैं लेकिन छठ पूजन की हलचल शिप्रा नदी के राम घाट सहित विभिन्न घाटों और विक्रम तीर्थ सरोवर समेत शहर के विभिन्न सरोवरों पर दिखाई देने लगी है। इंदौर में भी छठ पर्व को लेकर लोगों में उत्साह बना रहता है। छठ के अंतर्गत इस तरह से आयोजन मनाया जाता है। पहले दिन नहाय खाए का आयोजन होता है जिसमें घर के सभी सदस्य पूजन करने के साथ स्वयं को मन से शुद्ध कर व्रत करते हैं। इस दिन घर को साफ रखा जाता है और छठी मैया का स्वागत होता है। पर्व का दूसरा दिन खरना नाम से जाना जाता है। इस दिन घर में गुड़ की खीर बनाई जाती है। महिलाएं इस दिन निर्जला व्रत रखती हैं। पर्व के तीसरे दिन छठ का पर्व मनाया जाता है। इस दिन नदी या सरोवर के किनारे संध्या समय महिलाएं अस्ताचल सूर्य को अर्घ्य देती हैं। महिलाओं द्वारा बांस की टोकरी में फल, चावल से बने व्यंजन आदि रखे जाते हैं। भगवान सूर्य की आराधना में इस सूप का बड़ा महत्व है। इसके अलावा छठी मैया का पूजन किया जाता है। इसके बाद अगले दिन सूर्योदय पर भगवान भास्कर का पूजन किया जाता है, महिलाएं सभी के लिए मंगलकामनाएं करती हैं। महिलाएं पूजन के बाद फलाहार, प्रसादी और अन्य पदार्थों का सेवन कर व्रत पूर्ण करती हैं। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को सूर्य छठ का पर्व मनाया जाता है। मान्यता के अनुसार छठ तिथि पर सूर्य तथा दुर्गा के छठे अंश का प्रभाव रहता है। श्रीमद्भागवत के अनुसार संतान की प्राप्ति और पुत्र की रक्षा, बौद्धिक उन्नति के लिए छठ पूजन का महत्व है, अर्ध की प्रक्रिया में कलश के अंदर जल, चंदन, गुलााब जल अक्षत से मिश्रित जल धारा द्वारा सूर्य को अर्घ्य देकर प्रसन्न किया जाता है। ज्योतिष में सूर्य को पुत्र के समान तथा पुत्र का कारक ग्रह बताया है पौराणिक मान्यता में भी इस बात की पुष्टि होती है इस दृष्टि से कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी पर सूर्य पूजन किया जाता है। इस बार रवि योग में यह पर्व मनाया जाएगा। –