जगदलपुर। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद नक्सल उन्मूलन नीति में थोड़ा बदलाव किया गया है। आदिवासियों का भरोसा जीतकर उन्हें घर में ही रोजगार उपलब्ध कराने की योजना है। धुर नक्सल प्रभावित बीजापुर और सुकमा जिलों से इसकी शुरूआत की गई है। यहां सलवा जुड़ूम की वजह से डेढ़ दशक पहले बंद हो चुके स्कूलों को दोबारा खोला जा रहा है और ज्ञानदूत के तौर पर गांव के स्थानीय युवाओं की नियुक्ति की जा रही है। सरकार की मंशा साफ है, पहले नक्सलियों को मारो, फिर जब इलाका साफ हो जाए तो वहां स्कूल, अस्पताल, बिजली-पानी का इंतजाम कर इलाके को मुख्यधारा में जोड़ों। पिछले दिनों केंद्रीय गृह सचिव ने बस्तर में नक्सल समस्या पर बैठक ली थी जिसमें राज्य सरकार ने इस नई योजना का खाका पेश किया। दरअसल केंद्र चाहता है कि नक्सलियों को थोड़ी भी ढील न दी जाए। हालांकि राज्य सरकार इससे दो कदम आगे जाकर समस्या के स्थाई समाधान की दिशा में कदम बढ़ाती दिख रही है। पक्के भवनों पर व्यय करने की जगह रोजगार सृजन के लिए जिला खनिज न्यास से धन लेने की अनुमति कलेक्टरों को दी गई है। अभी ढह चुके स्कूल झोपड़ी में खोले जा रहे हैं लेकिन ज्ञानदूतों को डीएमएफ से दस हजार रुपये दिए जा रहे हैं। यहां रसोइया व चपरासी आदि की नियुक्ति का भी प्रावधान है। अब तक नक्सल इलाके के युवाओं को पुलिस में शामिल किया जाता रहा लेकिन अब शिक्षा-स्वास्थ्य व दूसरे कामों में भी उन्हें लगाया जाएगा। धुर नक्सल इलाकों में छोटे-छोटे उद्योग लगाने की योजना भी बनाई गई है। इलाके में शांति आने के बाद आदिवासियों की मांग के हिसाब से विकास के दूसरे काम किए जाएंगे। राज्य सरकार ने नक्सलवाद पर अंकुश लगाने के लिए छह महीने की योजना तैयार की है। अब नक्सलियों पर शिकंजा और कसेगा। डीजीपी डीएम अवस्थी ने नईदुनिया को बताया कि पिछले दस महीने में फोर्स ने कई हार्डकोर नक्सलियों को मार गिराया है। उन्होंने कहा कि निर्दोश ग्रामीणों की गिरफ्तारी नहीं की जाएगी। पिछले तीन साल में चार सौ से ज्यादा नक्सली मारे गए हैं। 2005 से 2013 के दौरान ताड़मेटला, झीरम समेत कई बड़ी नक्सल घटनाएं हुईं लेकिन इस साल अब तक कोई बड़ी घटना करने में वे कामयाब नहीं हो पाए हैं। बारिश थमते ही फोर्स नक्सलियों पर कहर बनकर टूटने को तैयार है। फोर्स के दबाव के साथ ही नक्सल इलाकों तक सरकार की पहुंच पहले से बेहतर हुई है, यही कारण है कि नक्सल संगठन को नए लड़ाके नहीं मिल रहे हैं। इसका खुलासा इनामी नक्सली देवा के इनकाउंटर में मारे जाने के बाद मौके से मिले तेलगू भाषा के पत्रों से हुआ है। इन पत्रों में नक्सली लीडरों ने दंतेवाड़ा, बीजापुर, सुकमा जिलों में अंदरूनी इलाकों तक सरकारी योजनाओं के पहुंचने की वजह से संगठन में भर्ती कम होने की बात कही है।